संवाददाता : गोड्डा, झारखंड
झारखंड में बेरोजगारी का गंभीर संकट: खनिज संपदा के बावजूद युवा हो रहे निराश
उच्च शिक्षा के बावजूद नौकरी के अवसर सीमित; पलायन बनी मजबूरी,
झारखंड, जो देश की अमूल्य खनिज संपदा से भरपूर है, वहाँ आज लाखों युवा एक गंभीर बेरोजगारी संकट का सामना कर रहे हैं। उपलब्ध आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, राज्य में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक बनी हुई है, जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने के लिए गहरी चिंता का विषय है।
मुख्य कारण और चुनौतियाँ:
खनिज निर्भर अर्थव्यवस्था: राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खनन और भारी उद्योगों पर टिकी हुई है। इस क्षेत्र में नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल से रोज़गार सृजन की गति धीमी हो गई है।
कौशल और मांग में अंतर: उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन उनके पास उद्योगों की वर्तमान जरूरतों के अनुरूप कौशल (Skill Set) का अभाव है। इससे तकनीकी और विशेष नौकरियों के लिए बाहरी राज्यों से लोगों को लाना पड़ रहा है।
असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: राज्य में संगठित (Formal) क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जबकि अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं, जहाँ वेतन और सामाजिक सुरक्षा बहुत कम है।
सरकारी नियुक्तियों में देरी: सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रियाएँ अक्सर विलंब और विवादों में फँसी रहती हैं, जिससे युवाओं में भारी निराशा है।
बढ़ता पलायन: रोजगार की तलाश में हज़ारों युवा और मज़दूर हर साल दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसका सीधा असर राज्य के मानव संसाधन और विकास पर पड़ रहा है।
हमारे झारखंड को बिहार से अलग होने से 25 साल हो गया है लेकिन अब तक हमारे झारखंड में जो विकास दर दिखना चाहिए अभी तक नहीं हो पाया है एवं बेरोजगारी दर छात्र-छात्राओं के बीच बहुत ही अधिक बढ़ता जा रहा है इन सभी विषयों को लेकर झारखंड सरकार को सोचने एवं समझने की आवश्यकता है नहीं तो आने वाले समय में झारखंड में युवाओं की स्थिति एवं आम जनता की स्थिति और भी खराब होता जाएगा।

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